महात्मा गाँधी के कला-बोध और कलाओं से उनके सम्बन्ध और उनकी अपेक्षाओं पर समग्रता से एकत्र विचार करने वाली यह पहली पुस्तक है। अरविन्द मोहन ने इस सिलसिले में प्रामाणिक साक्ष्य जुटाया है और सम्यक् विवेचन कर गाँधी जी की कला-दृष्टि विन्यस्त की है।
गांधी का स्पष्ट मानना था कि वही काव्य और वही साहित्य चिरंजीवी रहेगा जिसे लोग सुगमता से पा सकेंगे, जिसे वो आसानी से पचा सकेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरविंद मोहन ने बहुत बारीक तथ्यों के साथ इस पुस्तक का लेखन किया है, ये पुस्तक आप अमेजन से खरीद सकते हैं। आप चाहें तो पब्लिशर से भी सीधे ऑर्डर कर मंगा सकते हैं।