उसका अस्तित्व कैसा था ? वह स्त्री था, पुरुष था अथवा तृतीय लिंगी ? एक व्यक्ति से जुड़े अनेक प्रश्न… क्योंकि उसका अस्तित्व सामान्य नहीं था । वह शक्तिपुंज पात्र ‘महाभारत’ महाकाव्य का सबसे दृढ़ निश्चयी चरित्र है, जो अपने जीवन की प्रत्येक परत के साथ न केवल चैंकाता है वरन् अपनी ओर चुम्बकीय ढंग से आकर्षित भी करता है । वह पात्र है शिखण्डी, जिसका अस्तित्व भ्रान्तियों के संजाल में उलझा हुआ है । वहीं यह इतना प्रभावशाली पात्र है कि महर्षि वेदव्यास ने ‘महाभारत’ के सबसे इस्पाती पात्र भीष्म से ‘अम्बोपाख्यान’ कहलाया है, जो शिखण्डी की ही कथा है, जबकि भीष्म और शिखण्डी के मध्य वैमनस्यता का नाता रहा । इस अत्यन्त रोचक पात्र की जीवनगाथा अंतस को झकझोरने में सक्षम है । अत: शिखण्डी के सम्पूर्ण जीवन को नवीन दृष्टिकोण से जांचने, परखने और प्रस्तुत करने की आवश्यकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता । जब शिखण्डी के जीवन की परतें खुलती हैं तो हमारे प्राचीन भारत में सुविकसित ज्ञान के उस पक्ष की भी परतेंं खुलकर सामने आने लगती हैं जहां शल्य चिकित्सा द्वारा लिंग परिवर्तन किए जाने के तथ्य उजागर होते हैं । इन तथ्यों का ही प्रतिफलन है यह उपन्यास ‘शिखण्डी : स्त्री देह से परे’ ।
डॉ– (सुश्री) शरद सिंह एक प्रतिष्ठित उपन्यासकार होने के साथ ही भारतीय इतिहास एवं परम्पराओं की अध्येता भी हैं । अत: उन्होंने ‘महाभारत’ के इस विशिष्ट पात्र शिखण्डी को, उसके जीवन कीे व्यापकता को, चमत्कृत कर देने वाले तथ्यों के साथ जिस रोचक ढंग से उजागर किया है, वह इस उपन्यास को अति विशिष्ट बना देता है ।
इस पुस्तक को प्रकाशित किया है सामयिक प्रकाशन ने, 192 पेजों की इस किताब की कीमत 300 रुपए है लेकिन अमेजन पर छूट के साथ उपलब्ध है
Bahut hi sundar prastuti.