किताब के बारे में: जुगेसर हरेन्द्र कुमार पांडेय का दूसरा उपन्यास है। इसे प्रकाशित किया है अनुज्ञा बुक्स पब्लिकेशन ने, 84 पेजों की इस किताब की कीमत है 99 रुपए मात्र और ये अमेजन किंडल पर उपलब्ध है।
केदारनाथ सिंह की कलम से: जुगेसर हरेन्द्र कुमार पांडेय का दूसरा उपन्यास है। इसमें पाठक की संवेदना को जगाने और कई बार एक झकझोरनेवाली ताकत दिखाई पड़ती है। उपन्यास का नायक जुगेसर तमाम समस्याओं से जूझता है। अंतरजातीय विवाह से लेकर शिक्षा और राजनीति तक के क्षेत्रों के संकट इस उपन्यास में देखे जा सकते हैं। उपन्यासकार उन कोनों-अंतरों में भी झाँकता है, जहाँ अभी रोशनी नहीं पहुँची। इस तरह इस उपन्यास का फलक व्यापक है। मुझे इस उपन्यास के जिस पक्ष ने सर्वाधिक आकृष्ट किया, वह है भोजपुरी माटी की सोंधी गंध। मैं सामाजिक संदर्भों को तलाशते इस उपन्यास के लिए हरेन्द्र कुमार पांडेय को बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि पाठक इसे पसन्द करेंगे। –डॉ. केदारनाथ सिंह
इसी किताब से: जुगेसर का जइसे साफ-साफ दीखे लागल सब लड़कियन के चेहरा-बमनटोली के लड़की, हजाम के एगो लड़की, बढ़ईटोला के दूगो। एही तरे परिचय देब सब लड़कियन के बारे में। नाम त शायदे केहू जाने। उनका चेहरा पर एगो शान्त मुस्कान फइलल रहे। तबही पूजा चाय लेके अइली। उनका काँध पर हाथ रखके हिलावत कहली–‘का भइल सूत गइनी का? चाय लेके आइल बानी।’ ऊ अचकचा के उठलन। फेर कहे लगलन– ‘देख ना नींद आ गइल रल। सपना देखे लागल रहनीह।’ –‘कवनो लड़की के सपना रहल ह का?’ पूजा हँसी कहली। बरसात के मौसम रहे आ एमें त सबकर मन रससिक्त हो जाला। जुगेसर के जइसे चोरी पकड़ा गइल। कहलन–‘अरे हमरा जिन्दगी में पूजा रानी छोड़ के दोसर लड़की कहाँ मिलल।’ पूजा भी पास का कुर्सी पर बइठ गइली। जुगेसर का दिमाग से अभी तक गाँव गइल ना रहे। कहलन–‘देख ना बरसात में गाँव याद आ जाला। लड़िकाई के 16-17 साल के उमिर भुलाव ना।’ –‘कवनो खबर मिलल बा का?’ –‘कहाँ मिल ता। सुनाता कि गाँवन में फोन लागी। तब कहीं बातचीत कइल जा सक ता बाकिर का होई? के बा जे हमनी के खबर ली।’ –‘काहें रउरो त क सकीले। आउर ना त जगमोहन भैया के चिट्ठी लिख के हालचाल ले ही सकीले।’ तबही फोन के घंटी बाजल। पूजा का उठावे के पहिलहीं सोनी उठा लेले रहे। ऊ चिल्लाइल– ‘मम्मी नानी का फोन है।’ पूजा जाके फोन लिहली।